आदमी दुनिया में अकेला न रहे इसके लिए वह खुद को अपने जीवन में छोटे छोटे कामों में व्यस्त रखने का प्रयास करता रहे ताकि जीवन में अकेलापन दोधारी तलवार सा होकर पल प्रति पल काटता हुआ सा न लगे।
अभी अभी अखबार में एक हृदय विदारक ख़बर पढ़ी है कि शहर के एक वैज्ञानिक ने अपने आलीशान मकान में अकेलपन को न सहन कर आत्महत्या कर ली है। परिवार विदेश में रहता है और वह अकेले अपने घर में एक निर्वासित जीवन कर रहे थे बसर, वे जीवन में निपट अकेले होते चले गए , फलत: मौत को गले लगा गए।
हम कैसी सुख सुविधा और संपन्नता भरपूर जीवन जीने को हैं बाध्य कि जीवन बनता जा रहा है कष्ट साध्य ? आदमी सब कुछ होते हुए भी दिनोदिन अकेला पड़ता जा रहा है। वह खुल कर खुद को अभिव्यक्त नहीं कर पा रहा है। वह भीतर ही भीतर अपनी तन्हाई से घबराकर मौत को गले लगा रहा है।
हमारे यहां कुछ जीवन शैली इस तरह विकसित होनी चाहिए कि आदमी अकेला न रहे , वह अपने इर्द गिर्द बसे मानवों से हँस और बतिया सके। कम से कम अपने मन की बात बता सके। १८/०२/२०२५.