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6d
तुम अपने शत्रु को
जड़ से
मिट्टी में मिलाना चाहते हो।
पर हाथ पर हाथ
धरे बैठे हो।
क्या बिना लड़े हार
मान चुके हो ?
तुम
बदला ज़रूर लो
पर कुछ अनूठे रंग ढंग से !
पहले रंग दो
उसे अपने रंग में ,
उसे अपनी सोहबत का
गुलाम बना दो ,
फिर उसे अपने मन माफ़िक
लय और ताल पर
नाचने के काम पर लगा दो।
तुम बदला ले ही लोगे
पर बदले बदले रंग ढंग से !
तुम मारो उसे, प्रेम से,चुपके चुपके!
वह जिंदा रहे पर जीए घुट घुट के !

या फिर एक ओर तरीका है,
आज की तेज़ तरार दुनिया में
यही एक मुनासिब सलीका है कि
दे दो किसी सुपात्र को
सुपारी शत्रु के खेमे में
सेंधमारी करने की
चुपके चुपके।
इसमें भी नहीं है कोई हर्ज़
यदि दुश्मन का
बैठे बिठाए
निकल जाए अर्क।

इसके लिए
मन सबको
सबसे पहले सुपात्र और विश्वासपात्र को
चुनने की
रखता है शर्त,
ताकि शत्रु को
उसके अंजाम तक
पहुंचाया जा सके।
जीवन की रणभूमि में
मित्रों को प्रोत्साहित
किया जाए
और शत्रुओं को
निरुत्साहित।
जैसे को तैसा ,
सरीखी नीति को
अमल में लाया जाए।
तुम कूटनीति से
शत्रु को पराजित
करना चाहते हो।
इसके लिए
क्या शत्रु के सिर पर
छत्र धर कर
उसे अहंकारी बनाना चाहते हो ?
फिर चुपके से
उसे विकट स्थिति में ले जाकर
चुपके चुपके गिराना चाहते हो !
उसे उल्लू बनाना चाहते हो !!

पर याद रखो , मित्र !
आजकल की दुनिया के
रंग ढंग हैं बड़े विचित्र !
कभी कभी सेर को सवा सेर टकर जाता है,
तब ऐसे में लेने के देने पड़ जाते हैं।
सोचो , कहीं
तुम्हारा शत्रु ही
तुम्हें मूर्ख बना दे।
चुपके चुपके चोरी चोरी
करके सीनाज़ोरी
आँखों में धूल झोंक दे !
उल्टा प्रतिघात कर मिट्टी में रौंद दे !!
अतः बदला लेने का ख्याल ही छोड़ दो।
अपनी समस्त ऊर्जा को
सृजनात्मकता की ओर मोड़ दो।
१६/०२/२०२५.
Written by
Joginder Singh
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