आदमी की सोच सच की खोज से जुड़ी रहनी चाहिए। इस दिशा में बढ़ने से पहले उसे अपने भीतर हिम्मत संचित करनी चाहिए। आदमी अपनी सोच का दायरा जितना हो सके , उतना बढ़ाए ताकि कोई भी बाधा उसे दुःख न पहुँचा पाए। वह खुद को एक दिन समझ पाए , जीवन पथ पर निरन्तर बढ़ता जाए , हमेशा सच की समझ भीतर विकसित कर पाए। वह सोच समझ कर जीवन के उतार चढ़ावों के संग सामंजस्य स्थापित कर पाए। उसकी सोच का दायरा तंग दिली से सतत बाहर उसे निकाल कर उन्मुक्त गगन की सैर कराए। १६/०२/२०२५.