अचानक दादा को अपने पोते की आठ पासपोर्ट साइज तस्वीरें फटी हुई अवस्था में मिल गईं थीं। उन्हें यह सब अच्छा नहीं लगा कि जिसे बड़े प्यार से, भाव भीने दुलार से जीवन में खेलाया और खिलाया हो , उसकी तस्वीरें जीर्ण शीर्ण लावारिस हालत में पड़ीं हों। उन्हें यह सब पसंद नहीं था , सो उन्होंने अपने पुत्र को बुलाया। एक पिता होने के कर्त्तव्य के बाबत समझाया और तस्वीरों को जोड़ने का आदेश सुनाया। फिर क्या था पिता काम पर जुट गया और उसने उन तस्वीरों को जोड़ने का किया चुपके चुपके से प्रयास। किसी हद तक तस्वीरें ठीक ठाक जुड़ भी गईं। उसने अपने पिता को दिखाया और कहा, " अब ये काम में आने से रहीं । बेशक ये जुड़ गईं हैं, फिर भी फटी होने की गवाही देती लगती हैं।" यह सुन कर दादा ने अपने पोते की बाबत कहा , "बेशक अब वह बड़ा हो गया है। स्कूल के दौर की ये तस्वीरें उसे बिना किसी काम की और बेकार लगातीं हों। फिर भी उसे इन्हें फाड़ना नहीं चाहिए था। तस्वीरों में भी बीते समय की पहचान होती है। ये जीवन के एक पड़ाव को इंगित करतीं हैं। अतः इन्हें समय रहते संभाला जाना चाहिए , बेकार समझ फाड़ा नहीं जाना चाहिए। अच्छा अब इन्हें एक मोटी पुस्तक के नीचे दबा दे , ताकि ये तस्वीरें ढंग से जुड़ सकें।"
पुत्र ने पिता की बात मान ली। तस्वीरों को एक मोटी पुस्तक के नीचे दबा दिया। पुत्र मन में सोच रहा था कि दादा को मूल से ज़्यादा ब्याज से प्यार हो जाता है। वह भी इस हद तक कि पोते की जीर्ण शीर्ण तस्वीर तक दादा को आहत करती है। उन्हें भविष्य की आहट भी विचलित नहीं कर पाती क्योंकि दादा अपना भावी जीवन पोते के उज्ज्वल भविष्य के रूप में जीना चाहता है। उन्हें भली भांति है विदित कि प्रस्थान वेला अटल है और युवा पीढ़ी का भविष्य निर्माण भी अति महत्वपूर्ण है।
सबसे बढ़ कर जीवन का सच एक समय बड़े बुजुर्ग न जाने कब बन जाते हैं सुरक्षा कवच ! यही नहीं उनमें अनिष्ट की आशंका भी भर जाती है, पर वे कहते कुछ नहीं , हालात अनुसार जीवन के घटनाक्रम को करते रहते हैं मतवातर सही। यही उनकी दृष्टि में जीवन का लेखा जोखा। बुजुर्गों की सोच को सब समझें और दें जीने का मौका ; न दें उन्हें भूल कर भी धोखा। बहुत से बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में निर्वासित जीवन जीने को बाध्य किया जाता है। उनका सीधा सादा जीवन कष्ट साध्य बन जाता है। किसी हद तक जीर्ण शीर्ण तस्वीर की तरह! इसे ठीक ठाक कर पटरी पर लाया जाना चाहिए। जीवन को गंतव्य पथ पर सलीके से बढ़ाया जाना चाहिए। १३/०२/२०२५.