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Feb 12
आदमी की नियति
अकेला रहना है।
यदि आदमी अकेलापन अनुभूत न करे,
तो वह कभी जीवन पथ पर आगे न बढ़े।
वह प्रेम पाश में बंधा हुआ
जीवन की स्वाभाविक गति को रोक दे ।

मुझे कभी अपना अकेलापन खटकता था,
अब प्रेम फांस में हूँ ...
तो जड़ हूं , अर्से से अटका हुआ हूँ ,
अपनी जड़ता तोड़ने के निमित्त
कहां कहां नहीं भटका हूँ ?
कामदेव की कृपा दृष्टि होने पर
आदमी अकेला न रहकर
दुकेला हो जाता है ,
स्वतंत्र न रहकर परतंत्र हो जाता है।

पहले पहल
आदमी प्रेम में पड़कर
आनन्दित होता है ,
फिर इसे पाकर
कभी कभी परेशान होता है।
उसे यह सब एक झमेला प्रतीत होता है।

प्रेम से मुक्ति पाने पर
आदमी नितांत अकेला रह जाता है ,
जीवन का मर्म समय रहते समझ जाता है ,
फिर वह इस प्रेम पाश
और जी के जंजाल से बचना चाहता है ,
इसी कशमकश में
वह जीवन में उत्तरोत्तर अकेला पड़ता जाता है !
एक दिन अचानक से जीवन का पटाक्षेप हो जाता है !!आदमी अकेला ही कर्मों का लेखा जोखा करने
धर्मराज के दरबार में हाज़िर हो जाता है !
वहाँ भी वह अकेला होता जाता है !!
पर अजीब विडंबना है ,
वह यहां अकेलापन कतई नहीं चाहता है,
किसी का साथ हरदम चाहता है !!
१२/०२/२०२५.
Written by
Joginder Singh
38
 
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