आदमी की नियति अकेला रहना है। यदि आदमी अकेलापन अनुभूत न करे, तो वह कभी जीवन पथ पर आगे न बढ़े। वह प्रेम पाश में बंधा हुआ जीवन की स्वाभाविक गति को रोक दे ।
मुझे कभी अपना अकेलापन खटकता था, अब प्रेम फांस में हूँ ... तो जड़ हूं , अर्से से अटका हुआ हूँ , अपनी जड़ता तोड़ने के निमित्त कहां कहां नहीं भटका हूँ ? कामदेव की कृपा दृष्टि होने पर आदमी अकेला न रहकर दुकेला हो जाता है , स्वतंत्र न रहकर परतंत्र हो जाता है।
पहले पहल आदमी प्रेम में पड़कर आनन्दित होता है , फिर इसे पाकर कभी कभी परेशान होता है। उसे यह सब एक झमेला प्रतीत होता है।
प्रेम से मुक्ति पाने पर आदमी नितांत अकेला रह जाता है , जीवन का मर्म समय रहते समझ जाता है , फिर वह इस प्रेम पाश और जी के जंजाल से बचना चाहता है , इसी कशमकश में वह जीवन में उत्तरोत्तर अकेला पड़ता जाता है ! एक दिन अचानक से जीवन का पटाक्षेप हो जाता है !!आदमी अकेला ही कर्मों का लेखा जोखा करने धर्मराज के दरबार में हाज़िर हो जाता है ! वहाँ भी वह अकेला होता जाता है !! पर अजीब विडंबना है , वह यहां अकेलापन कतई नहीं चाहता है, किसी का साथ हरदम चाहता है !! १२/०२/२०२५.