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Feb 12
किसी की आस्था से
खिलवाड़ करना
ठीक नहीं है ,
यह न केवल
पाप कर्म है ,
बल्कि
यह अधर्म है ।
यदि ऐसा करने पर
सुख मिलता ,
तो सभी इस में
संलिप्त होते ,
वे जीवन के अनुष्ठान में
भाग न लेकर
भोग विलास में
लिप्त होते।

किसी की आस्था पर
चोट करना सही नहीं ,
बेशक
तुम बुद्धि बल से
जीवन संचालित करने के
हो पक्षधर ,
तुम आस्थावादी के
मर्म पर अकारण
न करो चोट ,
न पहुंचाओ कोई ठेस,
न करो पैदा किसी के भीतर क्लेश।
यदि कोई अनजाने दुःखी होकर
कोई दे देता है बद्दुआ,
समझो कि
अपने पैरों पर
कुल्हाड़ी मार ली ,
अपने भीतर
देर सवेर बेचैनी को
हवा दी ,
अपने सुख समृद्धि और संपन्नता को
अग्नि के हवाले कर दिया ,
अपना जीवन श्राप ग्रस्त कर लिया।
किसी के विश्वास पर
जान बूझ कर किया गया आघात
है बरदाश्त से बाहर ।
यही मनोस्थिति श्राप की वजह बनती है।
भीतर की संवेदनशीलता
अंदर ही अंदर
पछतावा भरती है ,
जो किसी श्राप से कम नहीं है।
अतः आस्था पर चोट न करना बेहतर है ,
अच्छे और सच्चे कर्म करना ही
मानव का होना चाहिए ,
कर्म क्षेत्र है।
आस्था के विरुद्ध किया कर्म अधर्म है ,
न केवल यह पाप है ,
बल्कि तनावयुक्त करने वाला एक श्राप है,
मानवता के खिलाफ़ किया गया अपराध है।
12/02/2025.
Written by
Joginder Singh
35
 
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