हरेक के भीतर हल्के हल्के धीरे धीरे जब निरर्थकता का होने लगता है बोध तब आदमी को निद्रा सुख को छोड़ जीवन के कठोर धरातल पर उतरना पड़ता है, सच का सामना करना पड़ता है। हर कदम अत्यन्त सोच समझ कर उठाना पड़ता है, खुद को गहन निद्रा से जगाना पड़ता है।
उदासी का समय मन को व्याकुल करने वाला होता है, यही वह क्षण है, जब खुद को जीवन रण के लिए आदमी तैयार करे , अपनी जड़ता और उदासीनता पर प्रहार करे ताकि आदमी जीवन पथ पर बढ़ सके। वह जीवन धारा को समझ पाए , और अपने मन में सद्भावना के पुष्प खिला जाए , जीवन यात्रा को गंतव्य तक ले जाए।