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Feb 11
हरेक के भीतर
हल्के हल्के
धीरे धीरे
जब निरर्थकता का
होने लगता है बोध
तब आदमी को
निद्रा सुख को छोड़
जीवन के कठोर धरातल पर
उतरना पड़ता है,
सच का सामना
करना पड़ता है।
हर कदम अत्यन्त सोच समझ कर
उठाना पड़ता है,
खुद को गहन निद्रा से
जगाना पड़ता है।

उदासी का समय
मन को व्याकुल करने वाला होता है,
यही वह क्षण है,
जब खुद को
जीवन रण के लिए
आदमी तैयार करे ,
अपनी जड़ता और उदासीनता पर
प्रहार करे
ताकि आदमी
जीवन पथ पर बढ़ सके।
वह जीवन धारा को समझ पाए ,
और अपने  मन में
सद्भावना के पुष्प खिला जाए ,
जीवन यात्रा को गंतव्य तक ले जाए।

११/०२/२०२५.
Written by
Joginder Singh
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