सचमुच पहाड़ पर जिन्दगी पहाड़ सरीखी होती है देखने में सरल पर उतनी ही कठिन और संघर्षशील। पहाड़ी मानस की दिनचर्या पहाड़ के वैभव को अपने में समेटे रहती है और पहाड़ भी पहाड़ी मानस से बतियाता रहता है कभी-कभी ताकि जीवन ऊर्जा और शक्ति, जीवन के प्रति श्रद्धा और जिजीविषा बनी रहे, पहाड़ी मानस में संघर्ष का संगीत सदैव पल पल रचा बसा रहे। पहाड़ी मानस मस्त मौला बना रहे। जीवन में हर पल डटा रहे।
मैदान का आदमी पहाड़ के सौंदर्य और वैभव के प्रति होता रहा है आकर्षित, वह पर्यटक बन पहाड़ को समझना और जानना चाहता है जबकि पहाड़ी मानस पहाड़ को अपने भीतर समेटे घर परिवार और रोज़गार के लिए सुदूर मैदानों, मरूस्थलों और समन्दरों को ओर जाना। कुदरत आदमी और अन्य जीवों के इर्द-गिर्द चुपचाप सतत् सक्रिय रहकर बुना करती है प्रवास का ताना-बाना, उसके आगे नहीं चलता कोई बहाना। सब को किस्मत की सलीब ढोना पड़ती है, जीवन धारा आगे ही आगे बढ़ती रहती है। १०/०२/२०२५.