आदमी आज का कितनी भी कर ले चालाकियां , वह रहेगा भोलू का भोलू! कोई भी अपने बुद्धि बल से चतुर सुजान तक को दे सकता है मौका पड़ने पर धोखा। भोलू जीवन में धोखे खाता रहा है, ठगी ठगौरी का शिकार बनता रहा है, मन ही मन कसमसाकर रह जाता रहा है । एक दिन अचानक भोलू सोच रहा था अपनी और दुनिया की बाबत कि जब तक वह जिन्दगी के मेले में था, खुश था, मेले झमेले में था , उसकी दिनचर्या में था।
भीड़ भड़क्का ! धक्कम धक्का !! वह रह जाता था अक्सर हक्का बक्का !! अब वह इस सब से घबराता है। भूल कर भी भीड़ का हिस्सा बनना नहीं चाहता है। ०८/०२/२०२५.