परछाई यो में छिपा रहा मैं उम्र भर, दुनिया से डरता रहा मैं जिंदगी भर। जब एक बार गिरा तो अपनों ने नकारा कह दिया मुझे, अब क्या कहूं मैं उन्हें? साथ खड़े थे लोग उनके, खड़ा हुआ हूं मैं खुद से। शायद दिखी होगी रोशनी, उम्मीद कि उन्हें, मगर मैं खुद बना वो रोशनी, जो मिटा दे परछाई, जो कभी पकड़ाए थे मुझै।
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