ज़िंदगी भर मैं बगैर सोच विचार किए बोलता ही गया। कभी नहीं बोलने से पीछे हटा, फलत: अपनी ऊर्जा को नष्ट करता रहा, निज की राह बाधित करता रहा। निरंतर निरंकुश होकर स्वयं को रह रह कर कष्ट में डाले रहा। आज मैं कल की निस्बत कुछ समझदार हूं। कल मैं एक क्षण भी चुपचाप नहीं बैठ सका था , मैंने अपना पर्दाफाश साक्षात्कार कर्त्ता के सम्मुख कर दिया था। मैं वह सब भी कह गया जिसे लोग छिपाते हैं, और कामयाब कहलाते हैं। ज़्यादा बोलना किसी कमअक्ली से कम नहीं। यह कतई सही नहीं। आदमी को चुप रहना चाहिए, उसे चुपचाप बने रहने का सतत प्रयास करना चाहिए ताकि आदमी जीवन की अर्थवत्ता को जान ले, स्वयं की संभावना को समय रहते पहचान ले। आज अभी अभी बस यात्रा के दौरान मैंने मौन रहने का महत्व जाना है। सोशल मीडिया के माध्यम से मौन के फ़ायदे के बारे में ज्ञानार्जन किया है, अपने जीवन में ज्ञान की बाबत चिंतन मनन कर अपने आप से संवाद रचाया है। अभी अभी मैंने मौन को अपनाने का फैसला किया है कि अब से मैं कम बोलूंगा, अपनी ऊर्जा से खिलवाड़ नहीं करूंगा , जीवन में मौन रहकर आगे बढ़ने का प्रयास करूंगा, कभी तो जीवन में अर्थवत्ता को अनुभूत कर सकूंगा, सच के पथ पर अग्रसर होने से पीछे नहीं हटूंगा। जीवन रण में मैं सदैव डटा रहूंगा। कभी भी भूलकर किसी की शिकायत नहीं करूंगा। कल और आज के जीवन में घटित हुए घटनाक्रम ने मुझे तनिक अक्लमंद बनाया है, जीवन में अक्लबंद बने रहने के लिए चेताया है। यही जीवन की सीख है, जो यात्रा पथ पर क़दम क़दम पर अग्रसर होने से मिलती है, यह आदमी के अंतर्घट में चेतना की अमृत तुल्य बूंदें भरती है , जीवन में आकर्षण का संचार करती है। ३२/०१/२०२५.