सहसा जब कोई अचानक भीतर ही भीतर कसमसाकर पल पल टूटता जाए , जीवन से रूठता जाए , साहस कहीं पीछे छूटता जाए , तब आप ही बताइए आदमी क्या करे ? क्या वह जीवन में स्वयं को आगे बढ़ने से रोक ले ? क्यों न वह निज में बदलाव करे ? और वह अपनी समस्त ऊर्जा को लक्ष्य सिद्धि की खातिर कर्मठ बनने में खपा दे , जब तक वह निज को न थका दे । जीवन में साहसी बनकर सुख समृद्धि की ओर बढ़ा जा सकता है , जीवन पथ की दुश्वारियों से लड़ा जा सकता है , सहसा साहस भीतर भर कर डटा जा सकता है। जीवन पथ पर संकट के बादल मंडराते रहते हैं। साहस और सहजता से उनका सामना किया जाता है , संघर्ष के दौर में टिके रह कर विजेता बना जा सकता है। ३०/०१/२०२५.