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Jan 30
सहसा
जब कोई अचानक
भीतर ही भीतर
कसमसाकर
पल पल टूटता जाए ,
जीवन से रूठता जाए ,
साहस कहीं पीछे छूटता जाए ,
तब आप ही बताइए
आदमी क्या करे ?
क्या वह जीवन में स्वयं को
आगे बढ़ने से रोक ले ?
क्यों न वह निज में बदलाव करे ?
और वह अपनी समस्त ऊर्जा को
लक्ष्य सिद्धि की खातिर
कर्मठ बनने में खपा दे ,
जब तक वह निज को न थका दे ।
जीवन में साहसी बनकर
सुख समृद्धि की ओर बढ़ा जा सकता है ,
जीवन पथ की दुश्वारियों से लड़ा जा सकता है ,
सहसा साहस भीतर भर कर डटा जा सकता है।
जीवन पथ पर संकट के बादल मंडराते रहते हैं।
साहस और सहजता से उनका सामना किया जाता है , संघर्ष के दौर में टिके रह कर विजेता बना जा सकता है।
३०/०१/२०२५.
Written by
Joginder Singh
18
 
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