आज के दिन तीस जनवरी की तारीख को अचानक देशवासियों को झेलना पड़ा था आघात , जब किसी ने राजनीति के चाणक्य को दिया था चिर निद्रा में सुला , सत्य अहिंसा और सत्ता के केन्द्रबिन्दु रहे महात्मा पर गोलियां चला । वज़ह स्पष्ट थी , आदमी के भीतर बसी , अकड़ और हठधर्मिता , छीन लेती है आदमी का विवेक।
दोनों पक्ष स्वयं को मानते हैं सही। वे नहीं चाहते करना अपने दृष्टिकोण में समयोचित सुधार करना, फलत: झेलते हुए पीड़ा, दोनों ही समाप्त हो जाते हैं, अपने आगे बढ़ने की संभावना के सम्मुख प्रश्नचिह्न अंकित कर जाते हैं।
राजनीति के चाणक्य की सलाह कभी भी राजनीतिज्ञों ने दिल से मानी नहीं, फलत: महात्मा को कुर्बानी देनी पड़ी।
आज देश अराजकता के मुहाने पर खड़ा है। देश अपनी टीस को भूलकर तीस जनवरी को सायरन की आवाज़ के साथ मौन श्रद्धांजलि देने को होता है उद्यत। सब शीघ्रातिशीघ्र आदर्शों को भूलकर अपनी जीवनचर्या में व्यस्त हो जाते हैं । वे फिर से नव वर्ष के आगमन और तीस जनवरी के इंतजार में रहते हैं ताकि फिर से महात्मा को याद किया जा सके, उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी जा सके। मुझे क्या सभी को तीस जनवरी का व्यग्रता से रहता है इंतज़ार ताकि महात्मा को याद कर सकें , बेशक उनके आदर्शों से सब मुंह मोड़े रहें। ३०/०२/२०२५.