आदमी के पीछे यदि कुंठा किसी पिशाच सरीखी होकर पड़ जाए तो आदमी कहां जाए ? उसे हरेक दिशा में अंधेरा नज़र आए ! मन के भीतर मतवातर सन्नाटा पसरता जाए !! कुंठित आदमी अपने आसपास नागफनी सरीखी कांटेदार वनस्पति को जाने अनजाने रोपता है। उसका संगी साथी भी भय के आवरण से भीतर तक जकड़ा हुआ उसे अत्याचार करने से रोक नहीं पाता है। वह अपार कष्ट सहता जाता है ! कभी मन की बात नहीं कह पाता है !! मित्रवर ! जीवन को सहजता से जीयो। असमय कुंठित होकर स्वयं को न डसो। २९/०१/२०२५.