सुख में वृद्धि कैसे हो ? दुःख में कमी कैसे हो ? सुख और दुःख में आदमी कैसे तटस्थ रहे ? वह जीवन धारा में बहकर लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु स्वयं को संतुलित कैसे करे ?
जब कभी इस बाबत सोचता हूं तो आता है नज़र , आज का आदमी है प्रखर। वह नींद में भी कभी कभी सोच विचार कर अत्यधिक चिंतित और विचारमग्न रहकर कर लेता है खुद को बीमार। वह नींद में चलने फिरने लगता है। उसके जीवन में चोट लगने की संभावना बढ़ जाती है। जागने पर वह बहुत कुछ भूला रहता है।
नींद में चलना कतई ठीक नहीं। यह आदमी को कहीं भी पहुंचा देता है। यह आदमी को कभी कभार नुकसान पहुंचा देता है। इस पर काबू पाया जा सकता है। आदमी को जीवन में ठोकर लगने से पहले ही सजग करते हुए बचाया जा सकता है।
वैसे नींद में चलना कोई ख़तरनाक बीमारी नहीं। यह किसी को भी हो सकती है, बचपन में ज्यादा और वयस्कों में बहुत कम। यदि किसी को नींद में चलने की बाबत बताया जाता है तो वह हैरान रह जाता है, जब तक उसे प्रमाणित किया जाता नहीं। और यह है भी सही, कौन नींद में चलने के आरोप को सहे ? वैसे सच है कि अज्ञान की नींद में सोया हुआ व्यक्ति और समाज तक तकलीफ़ के बावजूद मतवातर आगे बढ़ते देखे गए हैं। नींद में चलने वाला आदमी भी अचेतावस्था में आगे बढ़ता है। बेशक जागने पर वह अपनी इस अवस्था की बाबत सिरे से इंकार करे। नींद में चलना बिल्कुल स्वाभाविक है, बेशक यह चेतन व्यक्ति को अच्छा न लगे। जीवन धारा हरेक अवस्था में आगे बढ़ी है, यह रोके से न कभी रुकी है। यह सोई ही कब थी ? जो अपनी नींद से जगने पर हड़बड़ाए आदमी सी जगी है। नींद में चलना स्वप्न में जीवन जीने जैसा है। स्वप्न भंग हुआ नहीं कि सब कुछ नष्ट प्रायः और भूल-भुलैया में खोने सरीखा , कुछ कुछ फीका और कुछ कुछ तेज़ मिर्ची सा तीखा और तल्ख। २९/०१/२०२५.