सच की तलाश में इधर उधर भटकना कोई अच्छी बात नहीं, आदमी समय रहते स्वयं को ढंग से तराश ले, यही पर्याप्त है।
बहुत से लोग सोचते कुछ और करते कुछ हैं , इन की वज़ह से सुख की तलाश में निकले जिज्ञासुओं को भटकना पड़ता है , अपने जीवन में कष्टों से जूझना पड़ता है। यदि आदमी की कथनी और करनी में अंतर न रहे , तो सुख समृद्धि और शांति की तलाश में और अधिक भटकना न पड़े , उसे सुख चैन सहज ही मिले , उसका अंतर्मन सदैव खिला रहे ! वह अपने अंदर के आक्रोश से और असंतोष की ज्वाला से कभी भी न झुलसे , बल्कि वह समय-समय पर अपने को जागृत रखने का प्रयास करता रहे ताकि वह सहजता पूर्वक अपनी मंजिल को तलाश सके। वह जीवन में आगे बढ़ कर न केवल अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सके , बल्कि तनावमुक्त जीवन धारा में बहकर समय रहते स्वयं की संभावना को सहज ही खोज सके। वह जीवन में सार्थकता की अनुभूति कर सके , सहजता से उसे निरर्थकता के अहसास से मुक्ति मिल सके। २८/०१/२०२५.