यह सुखद अहसास है कि उपेक्षित कभी किसी से कोई अपेक्षा नहीं रखता क्यों कि उसे आदमी की फितरत का है बखूबी पता , कोई मांग रखी नहीं कि समझो बस ! जीवन का सच समर्थवान शख्स दाएं बाएं, ऊपर नीचे होते हुए हो जाएगा चुपके-चुपके ,चोरी-चोरी लापता। उपेक्षित रह जाता बस खड़ा , उलझा हुआ, अपनी बेबसी पर खाली हाथ मलता हुआ।
इसलिए उपेक्षित कभी भी , कहीं भी , हर कमी और अभाव के बावजूद हर संभव संघर्ष करता हुआ , किसी के आगे हाथ नहीं फैलाता। वह कठोर परिश्रम करना है भली भांति जानता। सब तरफ से उपेक्षित रहने के बावजूद वह अपने बुद्धि कौशल से सफलता हासिल कर बनाए रखता है अपना वजूद । जीवन के हरेक क्षेत्र में अपनी मौजूदगी का अहसास हरपल कराता हुआ अपनी जिजीविषा बनाए रखता है। अपनी संवेदना और संभावना को जीवंत रखता है। चुपचाप सतत् मेहनत कर अपनी मंजिल की ओर अग्रसर होता है ताकि वह अपने भीतर व्याप्त चेतना को जीवन में सार्थक दिशा निर्देश के अनुरूप ढाल सके, समाज की रक्षार्थ स्वयं को एक ढाल में बदल सके , तथाकथित सेक्युलर सोच के अराजक तत्वों से बदला ले सके , उन्हें सार्थक बदलाव के लिए बाध्य कर सके। जीवन में सब कुछ सर्व सुलभ साध्य कर सके , जीवन में निधड़क होकर आगे बढ़ सके। उपेक्षित स्वयं से परिवर्तन की अपेक्षा रखता है , यही वजह है कि वह अपने प्रयासों में कोई कमीपेशी नहीं छोड़ता , वह संकट के दौर में भी कभी मुख नहीं मोड़ता, कभी संघर्ष करना नहीं छोड़ता। २६/०१/२०२५.