आज आदमी ने बाहर और भीतर को इतना कर दिया है प्रदूषण युक्त इस हद तक कि कभी कभी लगने लगता है डर... पर्यावरण बच पाएगा भी कि नहीं ? जीवन का दरिया निर्बाध रूप से बह पाएगा भी कि नहीं ? हम सब इस धरा पर ढंग से रह पाएंगे भी कि नहीं ? इससे पहले कि कुछ अवांछित घटे हम सब अपने अपने ढंग से पर्यावरण को सुरक्षित रखने के निमित्त दिन रात सतत प्रयास करें। क्यों न हम ! प्रतिदिन अपना अनमोल समय परिवेश को सुरक्षित करने के निमित्त दिन भर चिंतन मनन और व्यवहार में निवेश करें। हम सब सादा जीवन उच्च विचार को अपनाएं। जीवन की आपाधापी में समष्टि के रक्षार्थ अपनी जीवन शैली को जंगल ,जल, जमीन, हवा, धरा, पहाड़,जीवनादि के अनुरूप ढालकर स्वयं को निरंतर संतुलित और जागृत करते जाएं। आज जरूरत है आदमी अपनी संवेदना को समय रहते बचा पाए। वह प्रकृति के सान्निध्य में रहकर पर्यावरण को बचाने के लिए पुरज़ोर कोशिशें करे ताकि चेतना परिवेश और पर्यावरण के रक्षार्थ आदमी को क़दम क़दम पर न केवल मार्गदर्शन करें बल्कि वह समय-समय पर विनाश की चेतावनी भी देती रहे , आदमी जागरूक और चौकन्ना बना रहे। आदमजात अपना विकास समयबद्ध और सुनियोजित तरीके से करे ना कि विकास के नाम पर इस धरा पर विनाश का तांडव होता रहे !!! प्रकृति रुदन करती दिखाई दे !!! आओ हम सब परिवेश के रक्षार्थ अपने अपने जीवन काल में किसी न किसी तरह से समर्थन, समर्पण, संघर्ष करते हुए तन , मन , धन का निवेश करें ताकि परिवेश और पर्यावरण को बचाया जा सके, प्रकृति के सान्निध्य में रहकर जीवन धारा को स्वाभाविक गति से आगे बढ़ाया जा सके। जीवन को सुख ,समृद्धि और सम्पन्नता से भरपूर बनाया जा सके। इस जीवन में सार्थकता का आधार निर्मित किया जा सके , ताकि आदमी को कभी भी अपना जीवन आधा अधूरा न लगे। वह पूर्णता का अहसास कर सके। जीवन में क्षुद्रताओं का त्याग कर सके। २५/०१/२०२५.