आज दूध पता नहीं मन में चल रही उधेड़ बुन से या फिर वैसे ही लापरवाही से उबालते समय बर्तन से बाहर निकल गया , यह डांट डपट की वज़ह बन गया कि घर में कोई कब दूध की क़दर करेगा ? एक समय था जब दूध को तरस जाते थे और अब घोर लापरवाही ! आज भी आधी आबादी दूध को तरसती है। और यहां फ़र्श को दूध पिलाया जा रहा है।
पत्नी श्री से कहा कि घर में आई नवागंतुक जूनियर ब्लैकी को दूध दे दो , बेचारी भूखी लगती है । वह ऊपर गईं और फिसल गईं। दूध का कटोरा नीचे गिरा , दूध फ़र्श पर फैला, डांट डपट का एक और बहाना गढ़ा गया। जैसे सिर मुंडाते ही ओले पड़ें ! न चाहकर भी तीखी बातें सुननी पड़ें !!
सोचता हूँ... यह रह रह कर दूध का गिरना किसी मुसीबत आने की अलामत तो नहीं ? क्यों न समय रहते खुद को कर लूँ सही ! आजकल मन में सतत उधेड़ बुन लगी रहती है, फल स्वरूप एकाग्रता में कमी आ गई है। दूध उबलने रखूं तो पूरा ध्यान होना चाहिए दूध के बर्तन पर ताकि दूध बर्तन से उबालते समय बाहर निकले नहीं। वैसे भी दूध हम चुरा कर पीते हैं ! कुदरत ने जिन के लिए दूध का प्रबंध किया है , हम इससे उन्हें वंचित कर बाज़ार के हवाले कर देते हैं। और हाँ, मंडी में नकली दूध भी आ गया है, आदमी की नीयत पर प्रश्नचिह्न लगाने के निमित्त। फिर इस दौर में आदमी कैसे रखे स्वयं को प्रसन्न चित्त ? दूध का अचानक बर्तन से बाहर निकलना आदमी के मन में ठहराव नहीं रहा , को दर्शाता भर है। वहम और भ्रम ने आदमी को कहीं का नहीं छोड़ा , यह सच है। इसमें कहीं कोई शक की गुंजाइश नहीं है। २३/०१/२०२५.