कभी कभी पिता अपना आपा खो बैठते हैं , जब वह अपने लाडले को निठल्ला बैठे देखते हैं ।
उनके क्रोध में भी छिपा रहता है लाड,दुलार और स्नेह। पिता के इस रूप से पुत्र होता है भली भांति परिचित , फलत: वह रह जाता है चुप। अक्सर वह पिता के आदेश का करता है निर्विरोध पालन। बेशक अन्दर ही अन्दर कुढ़ता रहे ! चाहता है पिता का साया हमेशा बना रहे !!
पिता के आक्रोश का क्या है ? थोड़ी देर बाद एक दम से ठोस से द्रव्य बन जाएगा ! कभी कभी वह छलक भी जाएगा ! जब पिता अपनी आंखों में दुलार भरकर , झट से पुत्र के लिए चाय बना कर प्रेमपूर्वक लेकर आएगा। ...और जब पिता पुत्र दोनों एक साथ मिलकर चाय और स्नैक्स के साथ दुनिया भर की बातें गहन आत्मीयता के साथ करेंगे , तब क्रोध और तल्खी के बादल स्वत: छंटते चले जाएंगे।
पिता अपने आप ही क्रोध पर नियंत्रण का करने का करेंगे प्रयास और पुत्र पिता की डांट डपट को यह तो है महज़ मन के भीतर की गर्द और गुबार समझ कर भूल जाएगा। वह और ज़्यादा समझदार बनकर पिता की खिदमत करता देखा जाएगा।
पिता और पुत्र का रिश्ता किसी अलौकिक अहसास से कम नहीं। दोनों ही अपनी अपनी जगह होते हैं सही। बस उनमें कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए। उनमें निरन्तर सहन शक्ति बनी रहनी चाहिए।