यह संभव नहीं कि कभी मनुष्य पूर्णतः विकार रहित हो सके। फिर भी एक संभावना उसके भीतर रहती है निहित, कि वह अपने जीवनशैली धीरे धीरे विकार रहित बना सके, ताकि वह अपनी स्वाभाविक कमजोरियों पर नियंत्रण करने में सफल रहे।
कोई भी विकार सब किए धरे को कर देता है बेकार , अतः व्यक्ति जीवन में संयमी बने ताकि वह किसी हद तक विकार रहित होकर मन को शुद्ध रख सके, जीवन धारा में शुचिता का संस्पर्श कर सके। वह सहज रहते हुए आगे बढ़ सके, ताकि उस पर लंपट होने का कभी भी दोषारोपण न लग सके। वह जीवन में स्वयं के अस्तित्व को सार्थक कर सके। विकार रहित जीवन को अनुभूति और संवेदना से जोड़ कर अपने व्यक्तित्व में निखार ला सके। वह प्यार और सहानुभूति को चहुं ओर फैला सके, चेतना से संवाद रचा सके, अज्ञान की निद्रा से जाग सके। २१/०१/२०२५.