किसे नहीं जीवन अच्छा लगेगा ? जब जीवन के प्रति मतवातर आकर्षण जगेगा। मृत्यंजय क्यों कभी कभी मौत के आगोश में चला जाता है? जिसका नाम मृत्यु को जीतने वाला हो , वह क्यों जीवन के संघर्षों से हार जाता है? अभी अभी पढ़ी है एक ख़बर कि मृत्युंजय ने फंदा लगा लिया। वह जीवन से कुछ निराश और हताश था। आओ हम करें प्रयास कि सब पल प्रति पल बनाए रखें जीवन में सकारात्मक घटनाक्रम की आस ताकि आसपास हो सके उजास, भीतर भी सुख ,समृद्धि और संपन्नता का सतत होता रहे अहसास। अचानक शिवशक्ति को अपने नाम मृत्यंजय में समाहित करने वाला जीवात्मा असमय जीवन में न जाए हार। वह जीवन को अपनी उपस्थिति से आह्लादित करने में सक्षम बना रहे। वह अचानक सभी को शोकाकुल न कर सके। वह जीवन को हंसते हंसते वर सके। २०/०१/२०२५.