अपनी तकलीफ़ को बता पाना नहीं है कोई आसान काम। सुख में खोया आदमी नहीं दे सकता दूसरों के दुःख,दर्द, तकलीफ़ की ओर ध्यान। वह रहता अंतर्मगन। वह आवागमन के झंझटों से दूर रहना चाहता है। वह अपनी दुनिया में खोया रहता है, उसका अंतर्मन अपने आप में तल्लीन रहता है। छोटा बच्चा रोकर अपनी तकलीफ़ बताता है। किसान मजदूर धरना प्रदर्शन करने से सरकार को अपनी तकलीफें बताना चाहते हैं। और बहुत से लोग तकलीफ़ बताता तो दूर , वे संकुचा कर रह जाते हैं। वे अपनी तकलीफ़ कह नहीं पाते हैं। वे इस पीड़ा को सहते हुए और ज्यादा जख्मी होते रहते हैं। कहीं आप भी तो उन जैसे तो नहीं ? आप मुखर बनिए। जीवन में अपनी तकलीफ़ बताना सीखिए। 20/01/2025.