अचानक किसी भावावेग में आकर आदमी क्रूरता की सभी हदें पार कर जाए और होश में आने के बाद भागता फिरे निरन्तर वह बेशक पछताए, परंतु गुजरा समय लौट कर न आए। इससे बचने का ढूंढना चाहे कोई उपाय। उसका बचना मुश्किल है। वह कैसे अपना बचाव करे ? अच्छा है कि वह किसी दुर्ग में छुपने की बजाय परिस्थितियों का सामना करे। कानून और न्याय व्यवस्था के सम्मुख आत्म समर्पण करे।
अगर छिपने के लिए मिल भी जाए कोई दुर्ग जैसी सुरक्षित जगह का अहसास तब भी एक पछतावा सदा करता रहता है पीछा। एक सवाल मन में रह रह कर करता रहेगा बवाल , अब बचाव करूं या भागने की फिराक में रहूं ? अच्छा रहेगा कि आदमी खुद को निडर करे और सजा के लिए खुद को तैयार करे । आत्म समर्पण एक बेहतर विकल्प है , अपनी गलती को सुधारने का प्रयास ही बेहतर है जिससे एक बेहतर कल मिल सके , ताकि आदमी भविष्य में खुल कर जी सके। १९/०१/२०२५.