आदमी की जिन्दगी और जिंदगी में आदमी एक अद्भुत संतुलन बनाए हैं , वे एक दूसरे के साथ अंतर्गुंफित से हो गए हैं, दोनों एक दूसरे से होड़ा होड़ी करने को हैं तैयार बेशक आस पास उनके यार मार करने की चली जा रही चाल। वे अपने आप में तल्लीन सब कुछ भूले हुए हैं। बस उन्हें है यह विदित कि वे दोनों डांट डपट छल कपट आसपास की उठा पटक के बावजूद अपने अपने वजूद को बनाए रखने के निमित्त कर रहे हैं सतत संघर्ष और नहीं बचा है कोई विकल्प। आदमी की जिन्दगी और जिन्दगी में आदमी सरपट भागे जा रहें हैं अपने पथ पर। अवसर अक्सर अचानक एक अजगर सा होकर जाता है उनसे लिपट इस हद तक कि आदमी की जिन्दगी , और जिन्दगी में आदमी को समेट कर बढ़ जाता है सतत अपने पथ पर। समय एक अजगर सा होकर लिपटा जा रहा है आदमी की जिन्दगी से इस हद तक कि उसकी जिन्दगी का किस्सा लगने लगा है बड़ा अजीब और अद्भुत बिल्कुल एक शांत बुत सा। आदमी को जिन्दगी की तेज़ रफ़्तार के दौर ने जीने की होड़ ने , रोजमर्रा की दौड़ धूप ने बना दिया है एक बाज़ीगर सरीखा । वह अपनी मूल शांत प्रवृत्ति को छोड़ कर वह बनता चला जाता है पल पल तीखा ,एकदम तेज़ तर्रार हरपल क़दम क़दम पर अपने प्रतिस्पर्धी को चोट पहुंचाने को उद्यत। आदमी लड़ता है मतवातर परस्पर एक दूसरे से इस हद तक कि वह हरदम करना चाहता उठा पटक । वह जैसे ही अपने हिस्से पर झपटने के बाद अपने ठौर ठिकाने में लौट कर आता है , वह और ज़्यादा अपने भीतर सिमटता जाता है । जिन्दगी पर से उसका भरोसा लगातार पीछे छूटता जाता है , वह निपट अकेला रह जाता है। उसकी जिन्दगी को यह सब नहीं भाता है, फिर भी वह आदमी का साथ नहीं छोड़ती है। जिन्दगी का किस्सा है बड़ा अजीबोगरीब , आदमी जितना इससे पीछा छुड़ाना चाहता है , यह उतना ही आती जाती है आदमी के क़रीब। आदमी कभी भी पीछा नहीं छुड़ा पाता है। इस डांट डपट छल कपट के दौर में भी जिन्दगी आदमी के साथ साथ उसके समानांतर दौड़ी जा रही है अपने पथ पर। यह आदमी को निरन्तर आगे ही आगे है बढ़ा रही , यह सुख समृद्धि और संपन्नता की ओर उसे अग्रसर है कर रही। आदमी के भीतर की बेचैनी इस सब के बावजूद लगातार बढ़ती जा रही है। यही बेचैनी उसे दरबदर कर , ठोकरें खाने को विवश कर मतवातर भटका रही है। १८/०१/२०२५.