ऋण लेकर घी पीना ठीक नहीं , बेशक बहुत से लोग खुशियों को बटोरने के लिए इस विधि को अपनाते हैं। वे इसे लौटाएंगे ही नहीं! ऋणप्रदाता जो मर्ज़ी कर ले, वे बेशर्मी से जीवन को जीते हैं। ऋण लौटाने की कोई बात करे तो वे लठ लेकर पीछे पड़ जाते हैं। ऐसे लोगों से निपटने के लिए बाउंसर्स, वकील, क़ानून की मदद ली जाती है , फिर भी अपेक्षित ऋण वसूली नहीं हो पाती है।
कुछ शरीफ़ इंसान अव्वल तो ऋण लेते ही नहीं, यदि ले ही लिया तो उसे लौटाते हैं। ऐसे लोगों से ही ऋण का व्यापार चलता है, अर्थ व्यवस्था का पहिया विकास की ओर बढ़ता है।
ऋण लेना भी ज़रूरी है। बशर्ते इसे समय पर लौटा दिया जाए। ताकि यह निरन्तर लोगों के काम में आता जाए।
कभी कभी ऋण न लौटाने पर सहन करना पड़ता है भारी अपमान। धूल में मिल जाता है मान सम्मान , आदमी का ही नहीं देश दुनिया तक का। देश दुनिया, समाज, परिवार,व्यक्ति को लगता है धक्का। कोई भी उन पर लगा देता है पाबंदियां, चुपके से पहना देता है अदृश्य बेड़ियां। आज कमोबेश बहुतों ने इसे पहना हुआ है और वे इस ऋण के मकड़जाल से हैं त्रस्त, जिसने फैला दी है अराजकता,अस्त व्यस्तता,उथल पुथल।
हो सके तो इस ऋण मुक्ति के करें सब प्रयास ! ताकि मिल सके सभी को, क्या व्यक्ति और क्या देश को, सुख की सांस !! सभी को हो सके सुख समृद्धि और संपन्नता का अहसास!! १७/०१/२०२५.