सर्दियों की धूप देती है देह को, देह में रहते नेह को अपार सुख। यही गुनगुनी धूप आदमी को जिन्दगी में गुनगुनाने को करती है मजबूर कि उसके भीतर की तमाम उदासी धीरे धीरे होती जाती दूर। सर्दियों की धूप भी क्या होती है ख़ूब ! यह जीवन में ऊर्जा भर जाती है, तन और मन में आशा और सद्भावना के पुष्प खिला देती है , जीवन में संभावना की महक का अहसास करा देती है। ठंडी हवा के दौर में यह धूप न केवल अच्छी लगती है बल्कि यह भीतर तक जीवन धारा से आत्मीयता की ऊष्मा का बोध करवाने लगती है , जिससे जिन्दगी आनंद से भरपूर लगने लगती है। कभी कभी यह मन को मस्ताने लगती है।
सर्दियों की गुनगुनी धूप का जादू जब सिर चढ़ कर बोलता है , तब आदमी का सर्वस्व आनंदित होता है , उसका रोम रोम भीतर तक पुलकित होता है। ठंड से घिरे आदमियों के जीवन में इस गुनगुनी धूप का आगमन किसी वसंत के आने से कम नहीं। यह जीवनदायिनी बन जाती है, यह संजीवनी सरीखी होकर जीवन को ऊष्मा और ऊर्जा से भरपूर कर देती है। यह मन में सद्भावना का नव संचार भी करती है, जिससे जीवन में सार्थकता की प्रतीति होने लगती है। १६/०१/२०२५.