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घर और परिवार में
न हो कभी क्लेश
इसलिए
वे दोनों
उम्र बढ़ने के साथ साथ
एक दूसरे को
ठेस
पहुंचाने की
पुरानी आदत को
रहे हैं
धीरे धीरे छोड़।
यह उनके जीवन में
आया है एक नया मोड़।

आजकल
दोनों मनमानियाँ
करना
पूर्णरूपेण गए हैं भूल।
बस
दोनों तन्हा रहते हैं,
चुप रहकर
अपना दुखड़ा कहते हैं !
कभी कभी
आमना सामना होने पर
मुस्करा कर रह जाते हैं !!

उनके दाम्पत्य जीवन में
हर क्षण बढ़ रही है समझ ,
वे छोड़ चुके हैं करना बहस।

वे परस्पर
घर तोड़ने की बजाय
चुप रहना पसंद करते हैं ,
शायद इसे ही
समझौता कहते हैं ,
वे पीड़ाओं से घिरे
फिर भी
एक दूसरे की
दिनचर्या को देखने भर को
बुढ़ापे का सुख मानते हैं।

उनकी संवेदना और सहृदयता
दिन पर दिन रही है बढ़।
जीवन में मतवातर
आगे बढ़ने और हवा में उड़ने की ललक
थोड़ी सी गई है रुक।
वे अब अपने में ठहराव देख रहे हैं।
अपने अपने घेरे में सिमट कर रह गए हैं।

घर और परिवार में अब न बढ़े क्लेश
इसलिए अब वे हरदम चुप रहते हैं।
पहले वे बातूनी थे,
पर अब उनके परिचित
उन्हें गूंगा कहते हैं।
वे यह सुन कर, अब जलते भुनते नहीं,
बहरे बन कर रह जाते हैं !
कहीं गहरे तक
अपने आप में डूब जाते हैं !!
वे डांटते नहीं, डांट खाना सीख चुके हैं !!
फलत: खुद को सुखी मानते हैं।
और इसे जीवन में सही मानते भी हैं
ताकि जीवन में वजूद बचा रहे ,
जीवन अपनी गति से आगे बढ़ता रहे।
२९/०४/२००५.
Written by
Joginder Singh
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