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कभी कभी अज्ञान वश
आदमी एक शव
जैसा लगने लग जाता है
और दुराग्रह ,पूर्वाग्रह की वजह से
करने लगता है
किसी भाषा विशेष का विरोध।
ऐसे मनुष्य से है अनुरोध
वह अपनी भाषा की
सुंदर और प्रभावशाली कृतियों को
अनुवाद के माध्यम से
करे प्रस्तुत और अभिव्यक्त
ताकि जीवन बने सशक्त।
भाषा विचार अभिव्यक्ति का साधन है।
यह सुनने ,बोलने,पढ़ने और लिखने से
अपना समुचित आकार ग्रहण करती है।
सभी को मातृ भाषा अच्छी लगती है ?
पर क्या इस एक भाषा के ज्ञान से
जीवन चल सकता है ?
आदमी आगे बढ़ना चाहता है।
यदि वह रोज़गार को ध्यान में रख कर
और भाषाएं सीख ले तो क्या हर्ज़ है ?
बल्कि आप जितनी अधिक भाषाएं सीखते हैं ,
उतने ही आप प्रखर बनते हैं।
अतः आप व्यर्थ का भाषा विरोध छोड़िए ।
हो सके तो कोई नई भाषा सीखिए।
आपको पता है कि हमारी लापरवाही से
बहुत सी भाषाएं दिन प्रति दिन हो रहीं हैं लुप्त।
उनकी खातिर आप अपने जीवन में
कुछ भूली बिसरीं भाषाएं भी जोड़िए।
ये विस्मृत भाषाएं
आप की मातृ भाषा का
बन सकती हैं श्रृंगार।
इससे क्या आप करेंगे इंकार ?
हो सके तो आप मेरे क्षेत्र विशेष में आकर
अपनी मातृभाषा के जीवन सौंदर्य का परिचय करवाइए।
अपनी मातृभाषा को पूरे मनोयोग से पढ़ाइएगा।
हमें ‌ज्ञान का दान देकर उपकृत कर जाइएगा।
१२/०१/२०२५.
Written by
Joginder Singh
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