प्रारब्ध जीवन और मरण आरम्भ और अंत अंत और आरंभ से संप्रकृत एक घटनाक्रम भर है , जो जीवन चक्र का हिस्सा भर है। यहां अंत में आरम्भ की संभावना की खोज करने की लालसा है और साथ ही आरम्भ में सुख समृद्धि और संपन्नता की मंगल कामना निहित रहती है। सृष्टि में कुछ भी नष्ट नहीं होता है। महज़ दृष्टि परिवर्तन और ऊर्जा का रूपांतरण होता है।
आदमी की सोच में उपरोक्त विचार कहां से आते हैं ? यह सच है कि प्रारब्ध एक घटनाक्रम भर है। यह सिलसिला है कभी न समाप्त होने वाला जिससे जुड़े हैं कर्मों के संचित फल और उन्हें भोगना भर , कर्मों को भोगते हुए, नए कर्म फलों को निर्मित करना, सारे कर्म फल एक साथ भोगे नहीं जा सकते , ये संग्रहित होते रहते हैं बिल्कुल एक बैंक बैलेंस की तरह।
आरम्भ के अंत की बाबत सोचना एक आरंभिक स्थिति भर है और अंत का आरंभ भी एक क्षय का क्षण पकड़ना भर है प्रारब्ध कथा कहती है कि कुछ नहीं होता नष्ट! नष्ट होने का होता है आभास मात्र। प्रारब्ध के मध्य से गुजरने के बाद जीवात्मा विशिष्टता की ओर बढ़ती है। यह जीवन यात्रा में उत्तरोत्तर उत्कृष्टता अर्जित करती है।
प्रारब्ध एक घटनाक्रम भर है। जिसमें से गतिमान हो रहा यह जीवन चक्र है। ११/०१/२०२५.