तुम्हारे साए में तुम्हारे आने से परम सुख मिलता है , अतिथि ! हमारा सौभाग्य है कि आपके चरण अरविंद इस घर में पड़े । तुम्हारे आने से इस घर का कण कण खिल उठा है। मन परम आनंद से भर गया है। इस घर परिवार का हरेक सदस्य पुलकित और आनंदित हो गया है ।
जब आपका मन करे आप ख़ुशी ख़ुशी यहाँ आओ अतिथि ! हम सब के भीतर जोश और उत्साह भर जाओ। तुम हम सब के सम्मुख एक देव ऋषि से कम नहीं हो ,बंधु ! हम सब "अतिथि देवो भव: "के बीज मंत्र को तन मन से शिरोधार्य कर जीवन को सार्थक करना चाहते हैं , अतिथि ! तुम्हारे दर्शन से ही हम प्रभु दर्शन की कर पाते हैं अनुभूति, हे प्रभु तुल्य अतिथि !!
एक बार आप सब मेरे देश और समाज में अतिथि बनकर पधारो जी। आप आत्मीयता से इस देश और समाज के कण कण को सुवासित कर जाओ। आपकी मौजूदगी और भाव वात्सल्य के जादू से यह जीवन और संसार रमणीय बन सका है, हे अतिथि! आपके आने से , आतिथ्य सुख की कृपा बरसाने से , इस सेवक की प्रसन्नता और सम्पन्नता निरंतर बढ़ी है। जीवन की यह अविस्मरणीय निधि है। आप बार बार आओ, अतिथि। आप की प्रसन्नता से ही यहां सुख समृद्धि आती है। वरना जिंदगी अपने रंग और ढंग से अपने गंतव्य पथ पर बढ़ रही है। यह सभी को अग्रसर कर रही है। २५/०८/२००५.