कुछ सार्थक इस वरदान तुल्य जीवन में वरो। यूं ही लक्ष्य हीन नौका सा होकर जीवन धारा में बहते न रहो । अरे! कभी तो जीवन की नाव के खेवैया बनने का प्रयास करो। तुम बस अपने भीतर स्वतंत्रता को खोजने की दृढ़ संकल्प शक्ति भरो। स्वयं पर भरोसा करो। तुम स्व से संवाद रचाओ। निजता का सम्मान करो। अपने को जागृत करने के निमित्त सक्षम बनाओ। स्वतंत्रता की अनुभूति निज पर अंकुश लगाने पर होती है। अपने जीवन की मूलभूल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरों पर आश्रित रहने से यह कभी नहीं प्राप्त होती है। स्वतंत्रता की अनुभूति स्वयं को संतुलित और जागरूक रखने से ही होती है। वरना मन के भीतर निरंतर बंधनों से बंधे होने की कसक परतंत्र होने की प्रतीति शूल बनकर चुभती है। फिर जीवन धारा अपने को स्वतंत्र पथ पर कैसे ले जा पाएगी ? यह क़दम क़दम पर रुकावटों से जूझती और संघर्ष करती रहेगी। यह जीवन सिद्धि को कैसे वरेगी ? जीवन धारा कैसे निर्बाध आगे बढ़ेगी ? १०/०१/२०२५.