कफ़न शब्दों का सतत् ओढ़ा कर विचार और व्यवहार पर। जीवन की गुत्थी भले ही समझ आए न आए , खुद को कतई हताश न कर ।
ज़िंदगी बढ़ती चली गई है आगे और आगे , फिर हम ही क्यों जीवन की कटु सच्चाई से भागें ? क्यों न हम सब जीवन धारा के संग भ्रमण करें ! क़दम दर क़दम आगे बढ़ निज जीवन शैली में सुधार करें !! अपने भीतर निखार लाकर निरंतर आगे बढ़ने के प्रयास करें !!! आओ , आज सब इस बाबत विचार विमर्श करें। इसके साथ साथ सब स्वयं के भीतर नया विश्वास भरें। ०६/१२/१९९९.