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Jan 9
कफ़न
शब्दों का सतत्
ओढ़ा कर
विचार और व्यवहार पर।
जीवन की गुत्थी
भले ही
समझ
आए न आए ,
खुद को कतई
हताश न कर ।

ज़िंदगी
बढ़ती चली गई है
आगे और आगे ,
फिर हम ही क्यों
जीवन की कटु सच्चाई से भागें ?
क्यों न हम सब
जीवन धारा के संग भ्रमण करें !
क़दम दर क़दम आगे बढ़
निज जीवन शैली में सुधार करें !!
अपने भीतर निखार लाकर
निरंतर आगे बढ़ने के प्रयास करें !!!
आओ , आज सब इस बाबत विचार विमर्श करें।
इसके साथ साथ सब स्वयं के भीतर नया विश्वास भरें।
०६/१२/१९९९.
Written by
Joginder Singh
39
 
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