आजकल चापलूसी काम नहीं करती। इस बाबत आप क्या सोचते हैं ? ज़रा खुल कर अपनी बात कहिए। चापलूसी या खुशामद से जल्दी दाल नहीं गलती। इससे तो मायूसी हाथ आती है। आदमी की परेशानी उल्टे बढ़ जाती है।
आज शत्रु के सिर पर यदि कोई छत्र रखना चाहे , उसे मान सम्मान की प्रतीति कराना चाहे तो क्या यह संभावना बन सकती है ? क्या वह आसानी से उल्लू बन सकता है ? कहीं वह तुम्हें ही न छका दे। चुपके चुपके चोरी चोरी मिट्टी में न मिला दे। मन कहता है कि पहले तो शत्रुता ही न करो, अगर कोई गलतफहमी की वज़ह से शत्रु बन ही जाता है तो सर्वप्रथम उसकी गफलत दूर करने के भरसक प्रयास करो। फिर भी बात न बने तो अपने क़दम पीछे खींच लो। अपने जीवन को साधना पथ की ओर बढ़ाओ। सुपात्र को शत्रु से निपटने के लिए काम पर लगाओ , वह किसी भी तरह से शत्रु से निपट लेगा। साम ,दाम , दण्ड, भेद से दुश्मन को अपने पाले में कर ही लेगा। सुपात्र को सुपारी देने से यदि कार्य होता है सिद्ध तो सुपारी दे ही देनी चाहिए। बस उसे युक्तिपूर्वक काम करने की हिदायत दे दी जानी चाहिए, ताकि लाठी भी न टूटे और काम भी हो जाए। ०८/०१/२०२५.