हमारे यहां अज्ञान के अंधेरे को बदतर अंधा करने वाला माना जाता है। फिर भी कितने लोग अपने भीतर झांककर उजास की अनुभूति कर पाते हैं ? बल्कि वे जीवन में मतवातर भटकते रहते हैं। अचानक रोशनी जाने से मैं अपने आस पास को ढंग से देख नहीं पाया था, फलत: मेरा सिर दीवार से जा टकराया था। कुछ समय तक मैं लड़खड़ाया था, बड़ी मुश्किल से ख़ुद को संभाल पाया था। बस इस छोटी सी चूक से मुझे अंधेरा अंधा कर देता है , जैसा खयाल मनो मस्तिष्क में कौंध गया था। इस पल मैं सचमुच चौंक गया था। यह सच है कि घुप अंधेरा सच में आदमी की देखने की सामर्थ्य को कम कर देता है। वह अंधा होकर अज्ञान की दीवार से टकरा जाता है। इस टकरा जाने पर उठे दर्द से वह चौकन्ना भी हो जाता है। वह संभलने की कोशिश कर पाता है। यकीनन एक दिन वह गिरकर संभलना सीख जाता है। वह अथक परिश्रम के बूते आगे बढ़ पाता है। ०७/०१/२०२५.