कल ख़बर आई थी कि शहर में अचानक सुबह सात बजे एक इमारत धराशाई हो गई गनीमत यह रही कि प्रशासन ने एक सप्ताह पूर्व इस इमारत को असुरक्षित घोषित करवा दिया था वरना जान और माल का हो सकता था बड़ा भारी भरकम नुक्सान।
आज इस बाबत अख़बार में ख़बर पढ़ी यह महफ़िल रेस्टोरेंट वाली इमारत थी वहीं पास की इमारत में मेरे पिता नौकरी करते थे। इस पर मुझे लगा कि कहीं मेरे भीतर से भी कुछ भुर-भुरा कर झर रहा है , समय बीतने के साथ साथ मेरे भीतर से भी इस कुछ का झरना मतवातर बढ़ता जा रहा है , यह तन और मन भी किसी हद तक धीरे धीरे खोखला होता जा रहा है। जीवन में से कुछ महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दों का कम होना जीवन में खालीपन को भरता जा रहा है। मुझे यकायक अहसास हुआ कि इर्द-गिर्द कुछ नया बन रहा है , कुछ पुराना धीरे-धीरे मरता जा रहा है , जीवन के इर्द-गिर्द कोई चुपचाप मकड़जाल बुन रहा है।
ज्यों ज्यों शहर तरक्की कर रहा है, त्यों त्यों बाज़ार अपनी कीमत बढ़ा रहा है। यह इमारत भी कीमती होकर तीस करोड़ी हो चुकी थी। आजकल इस के भीतर रेनोवेशन का काम चल रहा था। वह भी बिना किसी से प्रशासनिक अनुमति लिए।
प्रशासन ने बगैर कोई देरी किए शहर भर की पुरानी पड़ चुकी इमारतों का स्ट्रक्चरल आडिट करवाने का दे दिया है आदेश।
मैं भी एक पचास साल से भी ज़्यादा पुराने मकान में रह रहा हूं , मैं चाहता हूं कि बुढ़ाते शहर की पुरानी इमारतों को स्ट्रक्चरल आडिट रिपोर्ट के नियम के तहत लाया जाए । असमय शहरी जनसंख्या को दुर्घटनाग्रस्त होने से बचाया जाए।
और हां, यह बताना तो मैं भूल ही गया कि मेरा शहर भूकम्प की संभावना वाली एक अतिसंवेदनशील श्रेणी में आता है। फिर भी यहां बहुत कुछ उल्टा-सीधा होता नज़र आता है , यहां का सब कुछ भ्रष्टाचार से मुक्त होना चाहता है। पर विडंबना है कि अचानक इमारत के गिरने जैसी दुर्घटना के इंतजार में इस शहर की व्यवस्था आदमी के असुरक्षित होने का हरपल अमानुषिक अहसास करवाती है। क्यों यहां सब कुछ , कुछ कुछ अराजकता के यत्र तत्र सर्वत्र व्यापे होने का बोध करा रहा है ? क्या यहां सब कुछ मलियामेट होने के लिए सृजित हुआ है ? कभी कभी यह शहर अस्त व्यस्त और ध्वस्त जैसे अनचाहे दृश्य दिखाता दिखाई देता है , चुपके से मन को ठेस पहुंचा देता है। ०७/०१/२०२५.