साला कोल्हू का बैल खेल गया खेल ! नियत समय पर आने की कहकर हो गया रफूचक्कर !! आने दो बनाता हूँ उसे घनचक्कर! यह सब एक दिन कोल्हू के बैल के मालिक ने यह सब सोचा था। पर कोल्हू का बैल बड़ी सफ़ाई से खुद को बचा गया था। आज वह अपने मालिक को वक़्त की गति को पूर्णतः गया है समझ कि विश्व गया है बदल अतः उसे भी अब बदलना होगा। जैसे की तैसे वाली नीति पर चलना होगा। अब वह मालिक को सबक सिखाना चाहता है और मालिक से सीख लेने की बजाय मालिक को भीख और अनूठी सीख देना चाहता है।
आज मिस्टर बैल तो आगे बढ़ा ही है, उसका मालिक भी अभूतपूर्व गति से गया है बढ़ ! वह कोल्हू के बैल से और सख्ती से लेता है काम।
कोल्हू का बैल सोचता रहता है अक्सर कि क्या खरगोश और कछुए की दौड़ में आज कछुआ जीत भी पाएगा ? साले खरगोश ने तो अब तक अपनी यश कथा पढ़ी ही नहीं होगी, बल्कि उस दुर्घटना से जीवन सीख भी ले ली होगी कि दौड़ में रुके नहीं कि गए काम से ! फिर तो ज़िन्दगी भर रोते रहना आराम से !! यह सोच वह मुस्कराया और जुट गया अपने काम में जी जान से। उसे भी जीवन की दौड़ में पीछे नहीं रहना है। समय के बहाव में बहना है। १४/११/१९९६.