मन की गति बड़ी तीव्र है ! इसे समझना भी विचित्र है! मन का अधिवास है कहां ? शायद तन के किसी कोने में! या फिर स्वयं के अवचेतन में! मन इधर उधर भटकता है ! पर कभी कभी यह अटकता है!! यह मन , मस्तिष्क में वास करता है। आदमी सतत इस पर काबू पाने के निमित्त प्रयास करता रहता है। यदि एक बार यह नियंत्रित हो जाए , तो यह आदमी के भीतर बदलाव लाता है। आदमी बदला लेना तक भूल जाता है। उसके भीतर बाहर ठहराव जो आ जाता है। यह जीव को मंत्र मुग्ध करता हुआ जीवन के प्रति अगाध विश्वास जगाता है। यह जीवंतता की अनुभूति बन कर मतवातर जीवन में उजास भरता जाता है आदमी अपने मन पर नियंत्रण करने पर मनस्वी और मस्तमौला बन जाता है। वह हर पल एक तपस्वी सा आता है नज़र, उसका जीवन और दृष्टिकोण आमूल चूल परिवर्तित होकर नितांत जड़ता को चेतनता में बदल देता है। वह जीवन में उत्तरोत्तर सहिष्णु बनता चला जाता है। मन हर पल मग्न रहता है। वह जीवन की संवेदना और सार्थकता का संस्पर्श करता है। मन जीवन के अनुभवों और अनुभूतियों से जुड़कर सदैव क्रियाशील रहता है। सक्रिय जीवन ही मन को स्वस्थ और निर्मल बनाता है। इस के लिए अपरिहार्य है कि मन रहे हर पल कार्यरत और मग्न , यह एक खुली किताब होकर सब को सहज ही शिखर की और ले जाए। इस दिशा में आदमी कितना बढ़ पाता है ? यह मन के ऊपर स्व के नियंत्रण पर निर्भर करता है , वरना निष्क्रियता से मन बेकाबू होकर जीवन की संभावना तक को तहस नहस कर देता है। कभी कभी मन की तीव्र गति अनियंत्रित होकर जीवन में लाती है बिखराव। जो जीवन में तनाव की बन जाती है वज़ह , फलस्वरूप जीवन में व्याप्त जाती है कलह और क्लेश। इस मनःस्थिति से बचना है तो मन को रखें हर पल मग्न।