तुम प्रसन्न रहो यही कामना है निरन्तर आगे बढ़ो मुठ्ठियों में अपनी खुशियाँ समेटते रहो ना जाने जीवन के किस मोड़ पर वो खड़ी मिले जो तुम्हारे सतरगीं सपनों सगं अपने सपनों की चादर बुनें जिसे ओढ़ सो जाना ईश्वर की नई कृतियां रचने अपने हर दर्द को उन पर वार भस्म कर देना उस भस्म से श्रृंगार करना शिव का तुम गण हो शिव के जो हर भभूति कष्टों की गले लगाए बैठे रहते हैं