आदमी के भीतर बहुत सारी संभावनाएं निहित हैं और उन को उभारना चरित्र पर करता है निर्भर। है न ! एक बात विचित्र बूढ़े आदमी के भीतर स्मृति विस्मृति के मिश्रण से निर्मित हो जाता है एक कोलाज , जो जीवन के आज को दर्शाता है , कोई विरला इससे रूबरू हो पाता है , बूढ़े आदमी की व्यथा कथा को समझ पाता है, उसके अंदर व्याप्त समय के आधार पर वृद्धावस्था की मानसिकता को कहीं गहरे से जान पाता है।
और इस सबसे ज़रूरी है कि बूढ़े आदमी के भीतर सदैव रहना चाहिए एक मासूमियत से लबरेज़ बच्चा जो जीवन यात्रा के दौरान इक्ट्ठा किए झूठ बोलने से हुए निर्मित धूल मिट्टी घट्टे को झाड़कर कर सके क़दम दर क़दम आदमी की जीवन धारा को साफ़ सुथरा और स्वच्छ। आदमी दिखाई दे सके नख से शिख तक सच्चा! ताकि निश्चिंतता से आदमी अपनी भूमिका को ढंग से निभाते हुए कर सके प्रस्थान! बिल्कुल उस निश्छलता के साथ जिसके साथ अर्से पहले हुआ था उसका आगमन। अब भी करे वह उसी निर्भीकता से गमन। भीतर बस आगमन गमन का खेल लुका छिपी के रहस्य और रोमांच सहित चलता है। इस मनोदशा में राहत उनींदी अवस्था में सपन देख मिलती है। बूढ़े के भीतर एक परिपक्व दुनिया बसती है। क्या उसके इर्द-गिर्द की दुनिया इस सच की बाबत कुछ जानती है ? या फिर वह बातें बनाने में मशगूल रहती है ! ०४/०१/२०२४.