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Jan 3
हार के बाद हार फिर एक बार फिर हार
हार को हराना है हमें, फिर से विजेता
स्वयं को बनाना है हमें ।
बस! बहुत हुआ!
अब गिरते , गिरते भी
स्वयं को संतुलित रखना है हमें।
क़दम से क़दम मिलाकर चलना है हमें।
गिरने के दौर में , बुलन्द बनाना है एक दूसरे को हमें।

आज दुर्दिनों का दौर है भले
भीतर निराशा हताशा है भले ही
हमें मतवातर आत्मावलोकन करना है
तत्पश्चात स्वयं को संतुलित और समायोजित करना है,
हमें हर हाल में स्वयं को सिद्ध करना है
लड़े बग़ैर नहीं हार माननी है
हमें विजेता बन कर सब में उत्साह जगाना है,
हार जीत का अहसास बस एक सिलसिला पुराना है।
हमें हर हाल में स्वयं को आगे बढ़ाना है ,
जीत में हार, हार में जीत सरीखी खेलभावना को
अपने जीवन दर्शन में निरंतर आत्मसात करते हुए
खुद को जिताना ही नहीं,वरन सर्वस्व को
विजेता बनाकर दिखाना है।
हार पर प्रहार करते हुए, ‌
विजय पथ पर जीवन यात्रा को आगे बढ़ाना है।
हार के बाद हार,फिर एक हार ,और हार को बेंध जाना है। जीवन धारा को संघर्ष की ओर
मोड़ कर विजयी बनाना है हमें।
अपने भीतर एक विजेता की
जिजीविषा को उभारना है हमें।
हार गया ,पर , गया बीता नहीं हुआ मैं !
अंतर्मन की इस अंतर्ध्वनि को गौर से सब सुनें !!
ताकि सभी की गर्दनें रहें सदैव तनी हुईं।
०३/०१/२०२५.
Written by
Joginder Singh
31
 
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