Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Jan 3
रिश्ते निभाना सीखते हुए ,
जीवन जाता है बीत।
यह सब को
बहुत
देर में समझ
आते आते आता है,
जीवन का सुनहरी दौर
अति तीव्रता से
जाता बीत।
आदमी
खाली हाथ
मलता रह जाता है ,
वह पछताता हुआ
मन मसोस
कर रह
जाता
है , 
आओ
हम रिश्ते
निभाने की
दिशा में सतर्क
रहते हुए
इस पथ पर आगे बढ़ें।
रिश्तों को न ढोएं ,
बल्कि इसमें
प्यार और दुलार भरें।
इसके लिए
भीतर लगाव के
साथ  जीवन को जीने का
आगाज़ करें,
कभी भी
न लड़ें
अपनी बात
खुलकर कहें
और अपने इर्द-गिर्द
व्याप्त स्वार्थ की
अंधी दौड़ से  
बचें।
हमेशा सच की
राह पर चलें
ताकि  
बुराई से
बच सकें।
अपने भीतर
सुरक्षा,
सुख चैन का अहसास
भरपूर मात्रा में
भर सकें।
निडर बन सकें,
धीरे-धीरे धीरज धरें,
शांत मना बन सकें।
०३/०१/२०२५.
Written by
Joginder Singh
28
 
Please log in to view and add comments on poems