अख़बार के एक ही पन्ने पर छपी है दो खबरें। दोनों का संबंध सड़क हादसों से है , एक सकारात्मक है और दूसरी नकारात्मक, पर ...!
शुरूआत सकारात्मक खबर से, "देशभर में सड़क हादसों में ११.९ प्रतिशत इजाफा, चंडीगढ़ में १९ प्रतिशत कमी ।..." आंकड़ों की इस बाजीगरी को पढ़ और समझ आया मुझे समय में व्याप्त चेतना का ध्यान, हम क्यों नहीं करते इस समय बोध का रोज़मर्रा की दिनचर्या में , सम्मान ? ताकि सभी सुरक्षित रहें, काल कवलित होने से बच सकें। मेरे मन में सिटी ब्यूटीफुल की ट्रैफिक व्यवस्था के प्रति सम्मान भावना बढ़ गई। काश! ऐसी ट्रैफिक व्यवस्था देश भर में दिखे , जिसने की ट्रैफिक रूल्स की अवहेलना उसका चेतावनी के साथ चालान भी कटे। यही नहीं , इस चालान राशि में से एकत्रित की गई धन राशि में से न केवल सड़क सुरक्षा जागरूकता कार्यक्रम को चलाया जाना चाहिए बल्कि इससे ट्रैफिक व्यवस्था से संबंधित उत्पादों को भी खरीदा जाए बल्कि आम आदमी तक को ट्रैफिक संचालन से जोड़ा जाना चाहिए , ताकि देश की आर्थिकता को भी बल मिल सके।
इसी पन्ने पर दूसरी ख़बर थोड़ी नकारात्मक है , " धुंध में साइन बोर्ड से टकराया बाइक सवार , अस्पताल में मौत ।"
क्यों न सड़क सुरक्षा के निमित्त आसपास निर्मित कर दिए जाएं बैरियर ? जो धुंध के समय ट्रैफिक को स्वत: कम रफ़्तार से आगे बढ़ाएं , ताकि बाइक सवार डिवाइडर से टकराने से बच जाएं। वैसे भी बाइक सवार यदि ड्रेस कोड को भी अपना लें, तब भी किसी हद तक हो सकता है दुर्घटनाग्रस्त होने से बचाव। धुंध के समय ज़रूरी होने पर ही घर और दफ्तर से निकलें बाहर, इस समय स्वयं पर अघोषित कर्फ्यू लगा लेना ही है पर्याप्त। एक ही पन्ने पर बहुत कुछ अप्रत्याशित छप जाता है , उसे पढ़ना और गुनना अपरिहार्य हो जाता है , बशर्ते किसी की पढ़ने लिखने और उसे अभिव्यक्त करने में रुचि हो। कभी तो वह छोटी-छोटी बातों पर ध्यान केंद्रित करे, जीवन में आगे बढ़ सके। ०३/०१/२०२५.