आज जब देश दुनिया अराजकता के मुहाने पर खड़ी है एक समस्या मेरे जेहन में चिंता बनी हुई है। सब लोग इतिहास को फुटबाल बना कर अपने अपने ढंग से खेल रहे हैं। सब धक्कामुक्की , जोर-जबरदस्ती कर अपनी बात मनवाने में लगे हैं। सब स्वयं को विजेता सिद्ध करना चाहते हैं। अपना नैरेटिव गढ़ना चाहते हैं। वे गड़े मुर्दे कब्रों से निकालना चाहते हैं। ऐसे हालात में एक पड़ोसी देश के मान्यनीय मंत्री महोदय ने सच कह कर बवाल मचा दिया। हंगामेदार शख़्सों को सुप्तावस्था से जगा दिया। उन्होंने आक्रमणकारी महमूद गजनवी की बाबत अपना नज़रिया बताया और अपने वतनवासियों को चेताया कि अब सच को छुपाया जाना नहीं चाहिए। इस की बाबत यथार्थ को स्वीकारा जाना चाहिए।
इतना सुनते ही वहां बवाल हो गया। इतिहास के बारे में अबूझ सवाल खड़ा हो गया। इतिहास की अस्मिता के सामने अचानक अप्रत्याशित रूप से एक प्रश्नचिह्न लगा देखा गया। मैंने इस घटनाक्रम को लेकर सोचा कि अब और अधिक देर नहीं होनी चाहिए। इतिहास का सच जनता जनार्दन के सम्मुख आना चाहिए। इतिहास के विशेषज्ञों और मर्मज्ञों द्वारा उपेक्षित इतिहास बोध को पुनर्जीवित करने के निमित्त इतिहास का पुनर्लेखन किया जाना चाहिए ताकि इतिहास अतीत का आईना बन सके। इसके उजास से अराजकता और उदासीनता को घर आने से रोका जा सके। सब अपने को गौरवान्वित महसूस कर सकें।
आखिरकार सच का सूरज बादलों के बीच से बाहर निकल ही आता है , जब संवेदनशील राजनेता इतिहास की बाबत सच को उजागर कर देता है। वह जाने अनजाने सबको भौंचक्का कर ही देता है। इतिहास अब चिंतन मनन का विषय बन गया है। यह जिज्ञासुओं के दिलों की धड़कन भी बन गया है। इसके सच की अनुभूति कर गर्व से सीना तन गया है। ०२/०१/२०२५.