क्या कभी सोचा आपने आखिर हम क्यों लड़ते हैं ? छोटी छोटी बातों पर लड़ने झगड़ने बिगड़ने लगते हैं । जिन बातों को नजर अंदाज किया जाना चाहिए , उनसे चिपके रहकर तिल का ताड़ बना देते हैं। कभी कभी राई को पहाड़ बना देते हैं। यही नहीं बात का बतंगड़ बनाने से नहीं चूकते। आखिर क्या हासिल करने के वास्ते हम अच्छे भले रास्ते से अपना ध्यान हटा कर जीवन में भटकते हैं। कभी कभी अकेले होकर छुप छुप कर सिसकते हैं।
क्या पाने के लिए हम लड़ते हैं ? लड़कर हम किससे जीतते हैं ? उससे , इससे , या फिर स्वयं से ! आखिकार हम सब थकते , टूटते, हारते हैं , फिर भी जीवन भर ज़िद्दी बने भटकते रहते हैं ।
क्या हम सभी कभी समझदार होंगे भी ? या कुत्ते बिल्लियों की तरह लड़ते और बहसते रहेंगे ! लोग हमें अपनी हँसी और स्वार्थपरकता का शिकार बनाकर हमें मूर्ख बनाने में कामयाब होते रहेंगे । उम्मीद है कि कभी हम अपने को संभाल खुद के पैरों पर खड़े होंगे। शायद तभी हमारे लड़ाई झगड़े ख़त्म होंगे।