अब सबसे ख़तरनाक आदमी सच बोलने वाला हो गया है और झूठ का दामन पकड़कर आगे बढ़ने वाला आदर्श हो गया है।
क्या करें लो आजकल ज़मीर कहीं भागकर गहरी नींद में सो गया है और सच्चा झूठों की भीड़ में खो गया है।
आजकल सच्चा मानुष अपने भीतर मतवातर डर भरता रहता है , जबकि झुके मानुष की सोहबत से सुख मिलता है।
आजकल भले ही आदमी को अपने साथी की हकीकत अच्छे से पता हो , उसके जीवन में पास रहने से सुरक्षित होने का आश्वासन भरा अहसास बना रहता है।
बेशक जीवन मतवातर समय की चक्की में पिसता सा लगे और आदमी सबकी निगाहों से खुद को छुपाते हुए अंदर ही अंदर सिसकियां भरता रहे , वह चाहकर भी झूठे का दामन कभी छोड़ेगा नहीं! जीवन का पल्लू कभी झाड़ेगा नहीं! वह उसे बीच मझधार छोड़कर कभी भागेगा नहीं!
आजकल यही अहसास बहुत है जीवन को अच्छे से जीने के लिए। कभी-कभी पीने, खुलकर हंसने के लिए। बेशक हरेक हंसी के बाद खुद को ठगने का अहसास चेतना पर हावी हो जाए। फलत: आजकल आदमी सतत् झूठे के संग घिसटता रहता है! उसके जीवन से चुपके चुपके से सच का आधार खिसकता रहता है!! वह जीवन में उत्तरोत्तर अकेला पड़ता जाता है। आजकल हर कोई सच्चे को तिरस्कृत कर झूठे से प्रीत रचाना चाहता है क्योंकि जीवन भावनाओं में बहकर कब ढंग से चलता है ? स्वार्थ का वृक्ष ही अब ज़्यादा फलता-फूलता है। आदमी आजकल अल्पकालिक लाभ अधिक देखता है, भले ही बहुत जल्दी जीवन में पछताना पड़े। सबसे अपना मुंह छिपाना पड़े। २८/१२/२०२४.