बहस एक बिना ब्रेक की गाड़ी है , यदि यह नियंत्रण से कभी अचानक हो जाए बाहर तो दुर्घटना निश्चित है। यह निश्चिंत जीवन में अनिश्चितता का कर देती संचार। यह संसार तक लगने लगता सारहीन और व्यर्थ।
बहस जीवन के प्रवाह को कर देती है बाधित। यह इन्सान को घर व परिवार और समाज के मोर्चे पर कर देती है तबाह। अतः इस निगोड़ी बहस से बचना बेहद ज़रूरी है , इससे जीवन की सुरक्षार्थ दूरी बनाए रखना अपरिहार्य है। क्या यह आज के तनाव भरे जीवन में सभी को स्वीकार्य है ? बहस कहीं गहरे तक करती है मार। इससे बचना स्व विवेक पर निर्भर करता है। वैसे यह सोलह आने सच है कि समझदार मानुष इसमें उलझने से बचता है। २५/१२/२०२४.