कहीं सुदूर खिला है पलाश। कहे है सब से अपनी संभावना तलाश। रह रह कर दे रहा हो यह सन्देश! अपनी जड़ों से जुड़ ,जीवन में आगे बढ़! हो सकता है कि छोटे शहरों, कस्बों, गांवों में बड़े दिल वाले, उदार मानसिकता वाले मानुष बसेरा करते हों जो संभावना के स्वागतार्थ सदैव रहते हों तत्पर। वे हमेशा मुस्कान बनाए रखते हों, और सार्थक जीवनचर्या से जुड़े हों।
यह भी संभव है कि बड़े शहरों,कस्बों और गांवों में तंगदिल, संकीर्ण मानसिकता से ग्रस्त मानुष हों, जो स्वयं से संभावना के आगमन को परे धकेलते हुए भीतर तक जड़ता के अंदर धंसे हों।
अच्छा रहेगा कि हम सब का जीवन सकारात्मक सोच से संचालित होता रहे। हमारा इर्द गिर्द और परिवेश सर्वस्व को सुख सुविधा, समृद्धि और संपन्नता से जुड़े रहकर ही आह्लादित हो! जबकि हम व्यर्थ की भाग दौड़ को जीवन में सुख का मूल समझ कर स्वयं को नष्ट करने पर तुले हों। जीवन को जटिल बना रहे हों। खुद को थका रहे हों और किसी हद तक संभावना के आगमन को अपने जीवन से मतवातर दूर करते हुए हाशिए से बाहर धकेले जा रहे हों।
आओ हम सब इस अराजकता के दौर में अपना ठौर ठिकाना संभालें। अपनी अपनी संभावना को तलाशें! कुछ हद तक निज के जीवन को तराशें!! २८/१२/२०२४.