स्वेच्छा से किया गया कर्म हमें कर्मठ बनाकर धर्म की अनुभूति कराता है , अन्यथा जबरन थोपा गया कार्य हमारे जीवन के भीतर ऊब और उदासीनता पैदा कर हमारी सोच को बोझिल व थकाऊ बनाकर भटकने के लिए बाध्य करता है।
स्वेच्छा से किया गया कार्य हमें शुचिता के मार्ग का अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित करता है और यह हमें जीवन पथ पर उत्तरोत्तर स्वच्छ मानसिकता का धारणी बनाता है , हमें पवित्रता की निरंतर अनुभूति कराता है , अन्यथा जबरन थोपा गया कार्य हमें अस्वाभाविकता का दंश देकर पलायनवादी और महत्वाकांक्षी सोच अपनाने को बाध्य कर रसविहीन और हृदयहीनता को बनाए रखता है।
आओ आज हम स्वाभाविकता को चुनें ताकि जीवन में कभी परेशान होकर हताशा और निराशा में जकड़े जाकर अपना सिर न धुनें । हम सदैव अपनी अन्तश्चेतना की ही सुनें। अपनी अंतर्दृष्टि को प्रखर करते हुए जीवन पथ पर आगे बढ़ें। हम सदैव कर्मठता का ही वरण करें। २५/१२/२०२४.