जब तक खग नभचर बना रहेगा और स्वयं के लिए उड़ने की ललक को अपने भीतर ज़िन्दा रखेगा , तब तक ही वह आजीवन संभावना के गगन में स्वच्छंदता से उड़ान भरता रहेगा। जैसे ही वह अपने भीतर उड़ने की चाहत को जगाना भूलेगा , वैसे ही वह अचानक जाएगा थक और किसी षड्यंत्र का हो जाएगा शिकार , वह खुद को एक खुली कैद में करेगा महसूस और एक परकटे परिन्दे सा होकर भूलेगा चहकना , कभी भूले से चहकेगा भी , तो अनजाने ही अपने भीतर भर लेगा दर्द , एकदम भीतर तक होकर बर्फ़ रह जाएगा उदासीन।
वह धीरे धीरे दिख पड़ेगा मरणासन्न , यही नहीं वह इस जीवन में असमय अकालग्रस्त होकर कर जाएगा प्रस्थान।
क्या तुम अब भी उसे किसी दरिन्दे या फिर किसी बहेलिए के जाल में फंसते हुए देखना चाहते हो ? उसकी अस्मिता को , आज़ाद रहकर निज की संभावना को तलाशते नहीं देखना चाहते हो ?